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वैलेंटाइन डे….

Anubhav
Anubhav
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वैलेंटाइन डे क्या होता है और क्यों मनाया जाता है, यह मुझे काफी बाद में समझ आया। जब में पत्रकारिता के क्षेत्र में आया। पहले तो इसका विरोध ही देखा और लिखा भी।
बचपन की याद है तब बैलेंटाइन डे तो नहीं मनाते थे, लेकिन मुझे लड़कियों से प्रेम की बजाय कुछ खौफ जरूर था। मोहल्ले की एक महिला ने अचानक मुझे छेड़ा कि तेरी शादी अपनी बेटी कश्मीरा से करूंगी। मैं शरमा गया। उस महिला को मेरा शरमाना शायद अच्छा लगा और मैं जब भी उसे दिखता तो वह आसपास सभी लोगों से कहती मैरी कश्मीरा का पति जा रहा है। मुझे कश्मीरा से ही चिढ़ होने लगी। मैं उसके घर के आगे से निकलने से पहले दूर से यह देखता कि कहीं कश्मीरा का मां घर के बाहर तो नहीं है। यदि होती तो मैं रास्ता ही बदल देता। यह क्रम कई सालों तक चला, जब तक कश्मीरा की मां मुझे भूल न गई।
इसी तरह मोहल्ले में मुझसे करीब दस साल बड़ी लड़की पप्पी ने एक दिन मजाक में कई लोगों के सामने मुझे अपना पति कह दिया। तबसे मैने पप्पी के घर की तरफ जाना तब तक बंद रखा, जब तक उसकी शादी नहीं हो गई।
ब़ड़ा होने पर भी मैं लड़कियों के मामले में अनाड़ी रहा। यदि कोई अच्छी भी लगी, तो उससे दोस्ती गांठने की हिम्मत तक नहीं हो पाई। कुछ लड़कियों से दोस्ती की कोशिश भी की, लेकिन शुरूआत ही ऐसी हुई कि उसे मन की बात तो नहीं कह सका, लेकिन झगड़ा जरूर हो गया। किसी की भावनाओं को समझना। उसका सम्मान करना।सदा खुश रहो व दूसरों को भी खुश होता देखो। शायद यही प्रेम है। इसे हरएक अपने-अपने नजरिए से देखते हैं। यह मुझे बाद में पता चला कि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो हमेशा खुश रहते हैं। उनके लिए तो हर दिन वैलेंटाइन डे के समान होता है।
भानु बंगवाल

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