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जीवन में इंसान सभी कुछ सीखने की चाहत रखता है, लेकिन सीखने की क्षमता सीमित ही रहती है। कुछ चीजें जल्दी सीख जाता है और कुछ को सीखने में पूरी मेहनत ही क्यों न कर लो, फिर भी सफलता नहीं मिलती है। मैरे साथ भी संगीत को लेकर कुछ ऐसा ही है। गला फटा बांस के समान होने के कारण इससे सुर नहीं निकलते हैं। बचपन में पिताजी के हारमोनियम को बजाना सीख नहीं पाया, लेकिन उसे तोड़ जरूर दिया। नाटकों में भी संगीत पक्ष कमजोर होने पर साथियों से अलग ही मेरी आवाज आती थी। सो मैं चुप रहने पर ही अपनी भलाई समझता था।
एक दो गानों को छोड़कर शायद ही कोई गाना मुझे याद हो पाया। आस पड़ोस के साथ ही तमाम मैरे मौहल्ले के लोग मैरे पिताजी को पंडित जी कहकर पुकारते थे। उनका आदर भी काफी था। उन्हें कब कोई चिड़ा रहा इसका अहसास भी उन्हें नहीं हो पाया। बपचन की बात है मौहल्ले का सफाईकर्मी सुबह- सुबह जोर जोर से गाने के लहजे में बोला- पंडित जी। मैरे पिताजी ने कहा- हां जी। वो झट से गाना आगे गाने लगा। मैरे मरने के बाद, इतना कष्ट उठा लेना।
उसे सुनकर तब मैरे मन में एक बात जरूर घर कर गई कि गाना गाते समय यह ध्यान देना चाहिए कि कहीं इससे किसी को चोट तो नहीं पहुंचेगी। गाने की जब मैरे मन में ललक उठती है तो आधा-अधूरा गाना बेसुरे स्वर में घर में ही गाता हूं। एक दिन में गाने लगा- हमरा एक पड़ोसी है, नाम जिसका जोशी है। —तभी याद आया कि पड़ोसी बाकई में जोशी है। वो सुनेगा तो मुझसे खार खा बैठेगा। मै चुप हो गया,लेकिन शायद जोशीजी ने मेरा बेसुरा गाना सुन लिया और कई दिन तक मुझसे मुंह मोड़कर रखा।
बगल में मेरी भतीजी की नानी का घर है। उनक नाम मीरा है। आवाज भी कई बार एक दूसरे घर तक चली जाती है। अक्सर बाथरूम में गुनगुनाते हुए मैं घर में मै ऐसे गानों से परहेज ही करता हूं, जिसमें मीरा शब्द आए। सुबह-सुबह कई बार मन गुनगुनाने लगता है-ऐसी लागी लगन,मीरा हो गई मगन। इस गुनगुनाहट का वाल्यूम हल्का ही रखना मेरे लिए जरूरी है।
एक बार तो हद हो गई। मैं एक पुराना गीत- लौटा दे कोई, फिर वही मौसम एक बार। को गुनगुनाने का प्रयास कर रहा था। सुर का ज्ञान न होने से मैं बार-बार लय में आने के लिए लौटा दे, लौटा दे, — बोल रहा था। तभी मैरी पत्नी पानी से भरा लोटा लेकर आ गई और मुझे थमा दिया। शायद उसने सोचा कि लोटे में पानी मांगा गया है।
भानु बंगवाल
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