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खूबसूरती के सही मायने…

Anubhav
Anubhav
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ऐसा कहा गया है कि किसी व्यक्ति के बाहरी आकर्षण से ज्यादा खूबसूरत है उसके भीतर की सुंदरता। यदि किसी के मन, आचार, विचार शुद्ध होंगे तो वह व्यक्ति भी निश्चित तौर पर दूसरों को ज्यादा पसंद आएगा। इसके विपरीत सच्चाई यह भी है कि पहली बार व्यक्ति किसी से आकर्षित होता है, तो उसकी बाहरी सुंदरता को देखकर। सूरत, पहनावा, चाल ढाल आदि को देखकर ही व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के सुंदर होने का अंदाजा लगा लेता है। बाद में जब दूसरे के व्यवहार को जानने का मौका मिलता है तो उसके बाद ही सही राय निकल पाती है कि उक्त व्यक्ति कैसा है। यानी पहली नजर में किसी को देखकर धोखा भी हो सकता है।
हमेशा से ही व्यक्ति खूबसूरती की तरफ दौड़ता रहा है। यदि कोई घर में कुत्ता भी पाले तो सबसे पहले उसका प्रयास रहता है कि कुत्ते की प्रजाति अच्छी हो। दिखने में सुंदर हो। तभी वह उसे पालता है। कई बार लोग सड़क से आवारा कुत्ते को घर ले आते हैं। बाद में कुत्ते का व्यवहार उन्हें इतना आकर्षित करता है कि उन्हें वही अन्य प्रजाति के महंगे बिकने वाले कुत्ते से ज्यादा अच्छा लगने लगता है। यदि बाहर से दिखने में कोई सुंदर हो और भीतर से उसमें गुण नहीं तो ऐसा व्यक्ति हो या जानवर, उसे कोई भी पसंद नहीं करता है।
बात करीब तीस साल पहले की है। मुझे सड़क पर एक कुत्ता काफी दूर से अपनी तरफ आता दिखाई दिया। जब वह पास आया तो मैने उसे पुचकारा, तो वह दुम हिलाने लगा। यह कुत्ता पॉमेरियन प्रजाति के कुत्ते के समान था। बाल भी पामेरियन से काफी लंबे थे। रंग सफेद व काला मिक्स था। मैं जब घर की तरफ चला तो वह भी पीछे-पीछे चला आया। रास्ता भटक चुके इस कुत्ते को मैने घर पहुंचकर दूध और रोटी दी। वह काफी भूखा था। एक ही सांस में काफी खा गया। सर्दी के दिन थे। रात को घर के बाहर मैने उसे खुला ही छोड़ रखा था। ठंड लगने पर कुत्ते के रोने की आवाज सुनाई दी। मेरी माताजी ने कहा कि कुत्ता सर्दी से बीमार हो जाएगा, उसे भीतर ले आ। इस पर मैं उसे कमरे में ले आया और कुत्ता निश्चिंत होकर सो गया।
एक-एक कर कई दिन बीत गए। कुत्ता सुंदर था। घर आने वाले सभी लोग उसे प्यार करते। वह भी उछल-कूद मचाता। साथ ही मुझे यह बात आश्चर्यचकित कर रही थी कि इस कुत्ते को मैंने भौंकते हुए नहीं सुना। कोई अपरिचित व्यक्ति भी आता तो कुत्ता उस पर भौंकता ही नहीं था। उसकी आवाज भी मैने नहीं सुनी। एक दिन उसे कुछ कुत्तों ने काट खाया। मैं जब दवाई लगाने लगा तो वह कूं-कूं कर चिल्लाने लगा। मुझे काटने का भी उसने प्रयास किया, लेकिन तभी भी भौंका नहीं। बिन भौंकने वाले कुत्ते से मुझे नफरत सी होने लगी। उसकी बाहरी सुंदरता मुझे फूटी आंख भी नहीं सुहाती थी। मेरे मोहल्ले के डाकघर के पोस्टमास्टर ने एक दिन मेरा कुत्ता देखा। वह मेरे पीछे पड़ गया कि इसे बेच दे। मैने कहा कि मैं कुत्ते को नहीं बेच सकता। यदि ले जाना है तो फ्री ही ले जाओ। उसे आशंका थी कि कहीं मैं अपनी जुबां से पलट न जाऊं और बाद में कुत्ता वापस मांग लूं। ऐसे में वह बेचने पर ही जोर दे रहा था। पोस्टमास्टर क्रिकेट भी खेलता था। उसके पास क्रिकेट के बेट व बॉल आदि का काफी कलेक्शन था। मैने कुत्ते के बादले उससे क्रिकेट की एक बॉल ले ली। कुत्ता लेकर वह जितना खुश था, उससे ज्यादा मैं इसलिए खुश था कि चलो बगैर भौंकने वाले कुत्ते से छुटकारा मिल गया।
इस घटना के करीब एक साल गुजर गया। मैं छुट्टी होने पर स्कूल से घर को जा रहा था। रास्ते में मेरी क्लास के एक बच्चे का घर था। उसके घर के आंगन में मैने वही कुत्ता देखा, जिसे मैं पोस्टमास्टर को एक गेंद की एवज में बेच चुका था। मैने दोस्त से पूछा कि कुत्ता कहां से लाए। उसने कुत्ते की बढ़-चढ़ कर तारीफ की। उसने बताया कि टिहरी गढ़वाल से लाया गया है। मैने पूछा कि यह मुझे देखकर भौंका क्यों नहीं। इस पर दोस्त का कहना था कि नए घर में आया है, ऐसे में डरा हुआ है। इसके कुछ माह बाद मैने अपने सहपाठी से पूछा कि कुत्ता ठीक है। इस पर उसने बताया कि वह भौंकता नहीं था। उसे किसी दूसरे को दे दिया। यानि बाहर से खूबसूरत लगने वाले इस जानवर को भी कोई अपने घर में रखने को इसलिए तैयार नहीं हो रहा था कि वह अपनी प्रवृति के अनुरूप काम करने लायक नहीं था।
भानु बंगवाल

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