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मॉं- कहानी में प्रेरणा, हाथ में जादू

Anubhav
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वैसे तो मां की किसी भी आदत व व्यवहार की बराबरी कोई नहीं कर सकता, फिर भी मुझे अपनी मां की दो खासियत हमेशा याद रहती हैं। उनमें से एक है मां की कहानियां और दूसरी खासियत मां के हाथ से बनाया गया स्वादिष्ट खाना। उसकी कहानी में इस संसार में अच्छे-बुरे कर्म की नसीहत होती है। साथ ही उसके हाथ में अनौखा जादू है। इसी जादू का कमाल है कि उसके हाथ का खाना मुझे हमेशा याद रहता है।
आज के इस दौड़भाग के दौर में हो सकता है कि कई माताओं को बच्चों के लिए समय तक न हो, लेकिन जो माताएं अपने बच्चों के लिए कुछ समय निकालती हैं, वह तो धन्य हैं कि साथ ही उनकी औलाद भी धन्य हैं। बच्चों के विकास में मां की कहानियों का भी बड़ा योगदान होता है। कहानियां ही बच्चों को अच्छे व बुरे का ज्ञान कराती हैं।
बचपन से ही मुझे अपनी मां से कहानी सुनने का सौभाग्य मिला। मैं और मुझसे बड़ी बहने रात को सोने के लिए मां के अगल-बगल लेट जाते थे। फिर मां को कहानी के लिए बोला जाता। तब मानों मां के पिटारे में कहानी का भंडार था। हर रोज एक नई कहानी। कहानी सुनने के बाद ही मुझे अच्छी नींद आती थी। रात को सपने में कहानी के पात्र देखा करता। मां से सुनी कहानी से मिलता जुलता सपना ही मुझे आता था।
मां की कहानियों में सत्य की असत्य पर जीत, मेहनत करने का फल हमेशा मीठा होता है, ईमानदारी, दूसरों की मदद आदि संदेश छिपे होते थे। कामचोर के लिए कहानी के अंत में बुरा परीणाम आता था।
तीन भाई शूर, वीर और टोखण्या की कहानी तो मानो मुझे काफी पसंद थी। इसे अक्सर मैं मां को सुनाने के लिए कहता। फिर जब कहानी याद होने लगी तो मां के साथ मैं भी बोलता चला जाता। इस कहानी में तीन भाई होते हैं। शूर व वीर काफी मेहनत करते हैं और टोखण्या कामचोर व चालाक होता है। भाई खेतों में काम करते हैं, टोखण्या दिन भर मस्ती करता है। शाम को घर पहुंचने से पहले टोखण्या मिट्टी को शरीर में पोत कर घर पहुंचता है, जिससे यह लगे कि उसने ही ज्यादा काम किया। दो भाइयों की मेहतन से फसल उगती है, लेकिन टोखण्या उस पर अपना हक जताता है। वह कहता है कि धरती माता से पूछ लिया जाए कि फसल किसकी है। टोखण्या अपनी मां को जमीन में दबा देता है। फिर मौके पर भाइयों को ले जाता है और पूछता है कि धरती माता बता फसल किसकी है। मां को अपनी औलाद हमेशा प्यारी होती है। चाहे वह रावण जैसी हो या फिर राम की तरह। मां सोचती है कि टोखण्या नायालक है। उसके मरने के बाद तो दोनों भाई मेहनत करके खा कमा लेंगे, लेकिन टोखण्या का क्या होगा। ऐसे में जमीन में दबी मां बोलती है सारी फसल टोखण्या की है। भाई फसल टोखण्या को सौंप देते हैं। जमीन पर दबाने से मां की मौत हो जाती है।
इसके बाद दोनों भाई टोखण्या को सबक सिखाने की ठानते हैं। मेहनत करके वे काफी बकरियां लेकर गांव लोटते हैं। टोखण्या उनसे पूछता है कि कहां से बकरियां लाए। इस पर वे बताते हैं कि गंगा में एक स्थान ऐसा है, जहां छलांग लगाकर बकरियां मिलती हैं। इस पर टोखण्या गंगा में जाता है और छलांग लगा देता है। इस तरह उसके अत्याचारों से दोनों भाइयों को भी छुटकारा मिल जाता है। मां की कहानी में गलत राह का बुरा परिणाम बताया जाता था। साथ ही मेहनत के लिए प्रेरणा भी होती थी। कुछ साल पहले तक मेरे व भाई के बच्चों को मेरी मां वही कहानी सुनाया करती, जो मुझे सुनाती थी। मां के पौता, पौती, नाती आदि सभी ने इस दादी व नानी से कहानियां सुनी। आज मेरी मां की उम्र 85 साल से ऊपर हो गई है। वह अक्सर भूलने लगती है। ऐसे में वह कहानी तो नहीं सुना पाती, लेकिन बच्चों के लिए आज भी वह सबसे प्यारी दादी व नानी है। जब बच्चों को किसी गलती पर डांट पड़ती है या फिर मार खाने की नौबत आती है, तो वे बचाव के लिए दादी के पास ही जाते हैं।
मां के हाथ से बनाया खाना भी मुझे हमेशा अच्छा लगता है। खाने में उसकी मेहनत, लगन व प्यार समाया रहता है, जिस कारण उसका स्वाद होना लाजमी है। बचपन में मैं कई बार मां से शिकायत करता कि दूसरों के घर का खाना ज्यादा अच्छा होता है। इसका कारण यह था कि बच्चों को हमेशा दूसरों के घर का खाना ही अच्छा लगता है। बाद में जब कुछ साल घर से बाहर रहना पड़ा। होटलों में खाना खाया, तो तब अहसास हुआ कि मां के हाथ के खाने से अच्छा और कहीं खाना नहीं मिल सकता। लाख मना करने के बावजूद भी मेरी मां इस उम्र में भी कभी-कभार दाल व सब्जी अपने हाथों से बनाने का प्रयास करती है। हम मना इसलिए करते हैं कि उसका शरीर अब काम करने लायक नहीं रहा। फिर भी वह कभी जिद पकड़ लेती है। कांपते हाथों से दाल व सब्जी तैयार करती है। दाल भी वही होती है और मसाले भी वहीं, लेकिन उसमें स्वाद कहां से आ जाता है, यह रहस्य मैं आज तक नहीं जान पाया।
भानु बंगवाल

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