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ये कैसा प्यार….

Anubhav
Anubhav
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सफलता व विफलता दोनों ही इंसान के जीवन में आती रहती है। कहावत है कि बार-बार प्रयास करने के बाद इंसान कठिन से कठिन कार्य को भी सफल बना लेता है। ऐसे में व्यक्ति को प्रयास नहीं हारने चाहिए। इसके विपरीत सामाजिक परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि बार-बार व्यक्ति प्रयास में हारता रहता है, लेकिन उसकी हार में भी एक जीत होती है। ऐसा ज्यादातर प्रेम के मामलों में देखा गया है। कई बार प्रेमी हारकर भी जीत जाता है। यानी वह खुद तो मायूस हो जाता है, लेकिन दूसरों का दिल जीत लेता है।
मानव नाम के युवक की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। करीब तीन साल पहले वह हरिद्वार स्थित एक संस्थान में जनसंचार में स्नातकोत्तर का छात्र था। घर यूपी के किसी जिले में था और पढ़ने हरिद्वार आया हुआ था। खुद के लिए एक लक्ष्य निर्धारित कर वह पढाई कर रहा था। साथ ही साथियों को भी यही सुझाव देता कि उन्हें भी क्या करना चाहिए। या यूं कहिए कि मानव एक प्रतिभाशाली छात्र था, जो परीक्षा में भी पूरी यूनिवर्सिटी में टापर रहा। पढ़ाई के साथ ही वह नौकरी भी तलाशता रहा और पढ़ाई पूरी करते-करते एक संस्थान में उसे कामचलाऊ नौकरी भी मिल गई।
पढ़ाई के दौरान ही मानव की एक छात्रा से काफी निकटता बढ़ी। शुरुआत में वे अच्छे दोस्त रहे। धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदल गई। फिर दोनों साथ जीने व मरने की कसम खाने लगे और एक दूसरे के घर भी जाने लगे। मानव का घर यूपी में बरेली के निकट था और प्रिया नाम की उसकी मित्र छात्रा उत्तराखंड के उधमसिंह नगर की रहने वाली थी। मानव ने छात्रा को अपनी ही तरह मेहनती बनाने का हर संभव प्रयास किया। युवती भी दिल्ली में नौकरी लग गई। दोनों की मित्रता तक तो मामला सही था, लेकिन युवती के परिजन मित्रता को रिश्ते में बदलने को तैयार नहीं थे। उनकी निकटता के बीच जाति की दीवार मजबूती से खड़ी हो गई।
दोनों ही अपने परिजनों का मान रखते थे। दोनों ने ही अपने-अपने परिजनों को समझाने का प्रयास किया। इसमें मानव के परिजन तो मान गए, लेकिन युवती की मां राजी नहीं हुई। दोनों के मन में घर से भागने का विचार भी आया। उनके मित्रों ने भी कुछ इसी तरह के सुझाव भी दिए। इसके बावजूद लेकिन दोनों ने कुछ भी गलत न करने का निर्णय लिया, जिससे उनके परिजनों मान मर्यादा को ठेस लगे। बात आगे बढ़ रही थी और युवती के परिजनों की चिंता भी विकराल होती जा रही थी। ऐसे में प्रिया के घरवालों ने उसका रिश्ता किसी दूसरे से तय कर दिया। वह भी नौकरी छोड़कर अपने घर चली गई।
हर संभव प्रयास के बावजूद प्रिया की मां दोनों का रिश्ता करने को तैयार नहीं हुई और न ही मानव व प्रिया एक दूसरे को भूलने को तैयार नहीं हुए। एक दिन सुबह के समय मानव को प्रिया की मां का फोन आया कि प्रिया ने जहर खा लिया है। तू जल्द हमारे घर चला आ। मानव तो अपनी सुध-बुध खो बैठा। न चाय पी और न ही नाश्ता किया। तैयार हुआ और बस पकड़कर प्रिया के घर को रवाना हो गया। रास्ते में वह तरह-तरह की कल्पानाएं भी कर रहा था कि कहीं उसको निपटाने का प्लान तो नहीं बनाया गया है। फिर उसके मन में यह सकारात्मक विचार आता कि युवती की मां उसे कहेगी कि अब हमारे बस की बात नहीं है। तुम्हारे प्यार की जीत हुई। तू ही मेरी बेटी से विवाह कर ले। कुछ इसी तरह की कल्पानाओं के ताने-बाने बुनता हुआ वह युवती के घर चला गया। हां किसी अनहोनी या विवाद की स्थिति से निपटने के लिए वह अकेला नहीं गया।
प्रिया के घर पहुंचने पर उसकी माता ने मानव के भीतर की इंसानियत को जगाया। उसे जाति-पाति का पाठ पढ़ाया। दो जातियों के बीच की दीवार का मतलब समझाया। फिर अपना आंचल फैलाकर उसके सामने रख दिया और कहा कि मेरी बेटी को समझा और हमे भूल जा। तू ही मेरी बेटी को समझा सकता है। वह हमारे कहने में नहीं है, लेकिन तेरा कहना जरूर मानेगी। नहीं तो एक साथ कई परिवार बर्बाद हो जाएंगे। मानव के आगे खाई थी और पीछे कुंआ। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे या क्या न करे। फिर उसने प्रिया से कुछ देर बात की। इसके बाद वह हमेशा-हमेशा के लिए प्रिया से नाता तोड़ कर वापस घर को चल दिया। वहीं, प्रिया के परिजन उसकी कहीं और शादी की तैयारियों में जुट गए। फिर एक दिन ऐसा आया कि मानव को यूनिवर्सिटी से टॉपर का सम्मान दिया रहा था और दूसरी तरफ प्रिया की डोली उठ रही थी।
भानु बंगवाल

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