Anubhav
- 207 Posts
- 745 Comments
पहाड़ों ने भी ओढ़ ली
बर्फ की चादर
चुपचाप देखते रहे
हम तमाशा
चारों ओर चित्कार के खिलाफ
सी लिए होंठ
चुप्पी तोड़ने की कोशिश में
टूटकर बिखर रहा सच
बिखरा हुआ क्या तोड़ेगा
सन्नाटा
एक लहर उठी, मची हलचल
टूटने लगी चुप्पी
मचने लगा शोर
बंधने लगी मुट्ठियां
जलने लगी मशाल
फिर शुरू हुई
मशाल को बुझाने की कोशिश
यात्राएं तेज हुईं, यज्ञ हुए और महामंत्र
पढ़े जाने लगे
फिर भी ये आग कम नहीं हुई
कम होती भी कैसे
मशालची अपनी झोपड़ियों को जलाकर
बना रहे थे मशाल
भूखे पेट से निकलने लगा
रोटी की मांग के नारों का शोर
एक दिन ये मशाल
जला कर राख कर देगी
चुप्पी का पाठ पढ़ाने वालों को
और रचेगी एक नए समाज को
ये मशाल।
भानु बंगवाल
Read Comments