Menu
blogid : 9484 postid : 244

अलविदा बारह, नए संकल्प का सहारा….

Anubhav
Anubhav
  • 207 Posts
  • 745 Comments

वर्ष, 2012 को अलविदा कहने के साथ ही नए साल का स्वागत। बीते साल में यदि नजर दौड़ाएं तो इस साल को आंदोलन का साल कहने में मुझे कोई परहेज नहीं है। कभी बाबा रामदेव का आंदोलन, तो कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्ना हजारे का आंदोलन। इन आंदोलन में पूरे देश की जनता का आंदोलन में कूदना। लगा कि सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगा। एक आशा जरूर बंधी, लेकिन सब कुछ पहले की तरह ही नजर आया। न तो विभागों का सिस्टम बदला और न ही हमारी मानसिकता। जो इस भ्रष्टाचारी सिस्टम की आदि हो गई है। जब काम होता नहीं तो हम भी शार्टकट का रास्ता अपनाते हैं और उसी रास्ते चल पड़ते हैं, जिसके खिलाफ हम सड़कों पर उतरे थे। साल के अंत में दिल्ली में गैंगरैप की एक विभत्स घटना से तो मानो पूरे देश को ही उद्वेलित कर दिया। गैंगरैप की घटना कोई नई बात नहीं थी, लेकिन वहशियों ने जिस तरह से दरिंदगी को अंजाम दिया वह हरएक को व्यथित करने वाली थी। फिर लोग सड़कों पर उतरे और पहले आरोपियों की गिरफ्तारी, फिर गिरफ्तार होने पर फांसी की सजा की मांग जोर पकड़ने लगी। आरोपियों का क्या सजा मिलेगी, यह तो भविष्य के गर्त में छिपा है। सजा चाहे कितनी भी कड़ी क्यों न हो, लेकिन एक बात यह भी तय है कि ऐसी घटनाओं पर तब तक अंकुश नहीं लग पाएगा, जब तक समाज का नजरिया नहीं बदलेगा। चाहे वो भ्रटाचार के मुद्दे पर हो या फिर महिला के सम्मान का मुद्दा हो।
दिल्ली गैंगरैप की घटना के बाद लोग उद्वेलित हुए। समाज के हर वर्ग के लोग सड़कों पर उतरे, लेकिन क्या समस्या का हल निकला। लोगों के आंदोलन करने के दौरान भी महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाएं कम नहीं हुई। उत्तराखंड के श्रीनगर में तो शाम को कैंडिल मार्च निकला और उसके बाद ही युवती से छेड़छाड़ का मामला प्रकाश में आया। हालांकि महिलाओं ने ऐसे युवकों की पिटाई कर उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया। साथ ही यह भी मनन का विषय है कि महिला के प्रति सम्मान की जो बात हम बचपन से ही बच्चों को सिखाते हैं, क्या ये उन दरिंदों के माता-पिता ने उन्हें नहीं सिखाई। सच तो यह है कि आज एकल परिवार में माता-पिता इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें अपने बच्चों पर नजर रखने की फुर्सत तक नहीं है। पिता का बेटे के साथ बैठकर शराब पीना फैशन सा बन गया है। बेटी के आज भी देरी से घर आने पर हो सकता है उसे बड़े भाई के साथ ही माता-पिता के सवालों का जवाब देना पड़ सकता हो। लेकिन, इसके ठीक उलट बेटे पर तो कोई अंकुश नहीं रहता कि वह कहां जाता है और क्या कर रहा है। मेरी एक मित्र जितेंद्र अंथवाल से आज ही फोन से बात हो रही थी। उसने बताया कि उम्र के तीसरे पड़ाव में भी आज भी उनकी माताजी देरी से घर आने पर दस सवाल पूछने लगती है। माता-पिता का ये भय कहां है आज की युवा पीढ़ी को। साथ ही गुरु का डर भी नहीं रहा है। प्राथमिक स्तर की शिक्षा से ही आज नैतिक शिक्षा की जरूरत है। स्कूल के साथ ही ऐसी शिक्षा माता-पिता या अभिभावकों को भी बच्चों को देनी होगी। तभी हम समाज में बदलाव की बात को अमलीजामा पहना सकेंगे।
दामिनी की चिता जली और पूरे देश में वहिशयों के खिलाफ एक मशाल जली। शोक संवेंदना वालों का तांता लग गया। ऐसे लोगों में फिल्मी हस्तियां भी पीछे नहीं रही। सेलिब्रेटी के बढ़चढ़कर बयान आए। मानों की महिला उत्पीड़न की चिंता उन्हें ही है। यदि वास्तव में वे इतने गंभीर हैं तो उन्हें भी नए साल में ये संकल्प लेना चाहिए कि भविष्य में वे ऐसी फिल्मों से परहेज करेंगे जो विभत्स हो और समाज को बुराई की तरफ धकेलने के लिए प्रेरित करती हो। समाज को क्या शिक्षा दे रही हैं ये फिल्मी हस्तियां। ये तो हत्या या अन्य वातदात के तरीके सिखा रहे हैं। ऐसी ही एक फिल्म देखकर हरिद्वार में 12 वीं के छात्र ने पांचवी की छात्रा की हत्या करने के बाद उसके घर अपहरण का फोन किया और फिरौती मांगी।
नए साल की पूर्व संध्या पर उत्तराखंड में कई संगठनों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम निरस्त कर दिए। यानी सादगी से नए साल का स्वागत किया गया। इस स्वागत के बीच हमें बदलाव का संकल्प भी लेना चाहिए। यदि हम बच्चे हैं तो हमें संकल्प लेना होगा कि बड़ों को समझे और उनका सम्मान करें। इसके उलट यदि हम बड़े हैं तो हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम बच्चों को यह समझाएं कि क्या गलत है और क्या सही। यदि हम बदलाव की शुरुआत अपने घर से ही करेंगे तो इस समाज में भी इसका असर जरूर पड़ेगा।
भानु बंगवाल

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply