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मां अब तू बच्चा हो गई…..

Anubhav
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हे मां। अब आपको क्या हो गया है। रात को मेरे सोने के बाद ही ना जाने कब सोती थी, मुझे इसका पता तक नहीं चलता था। आप तो सुबह-सुबह मुझसे पहले बिस्तर से उठ जाती थी। जब मैं सोकर उठता तब तक आप नहा-धोकर पूजा भी कर लेती थी। आप जब पूजा के वक्त घंटी बजाती, तब ही मेरी नींद खुलती थी। अब आपको क्या होने लगा है। आपकी आदत बच्चों जैसी होने लगी है। सुबह भी भले ही आप सोई नहीं होती, लेकिन देरी से बिस्तर से उठ रही हो। नहाने का भी आपको याद नहीं रहता है। न आपको भूख लगती है और न ही आपको कुछ याद रहने लगा है। ऐसा परिवर्तन आपके स्वभाव व आदत में क्यों आने लगा है। छोटी-छोटी बातो पर आपकी जो डांट मुझे बुरी लगती थी, वो अब मुझे सुनाई नहीं देती। मुझे अब आपके बदले व्यवहार से डर लगने लगा है। मां तुम हमेशा वैसी ही बनकर रहो, जो कुछ साल पहले तक थी। हर छोटे-बड़े काम में आपकी सलाह को अब मैं तरस गया हूं। अभी तो आपकी उम्र सिर्फ करीब 88 साल है। मैं तो आपको सौ के पार तक देखना चाहता हूं।
एक शब्द मां। जिसके साथ हम आप की जगह यदि तू भी लगा दें, तो भी चलता है। क्योंकि मां शब्द में जादू ही ऐसा है। यह शब्द प्रेरणा देता है। जीवन की हर विपत्ति के क्षण में याद आता है। दूसरों से प्यार करना सीखाता है और अच्छाई और बुराई के बीच में फर्क का एहसास कराता है। क्योंकि हम जीवन की शुरूआत मां के आंचल से ही करते हैं। उसी की गोद में रहकर हमें यह अहसास होने लगता है कि क्या सही है या फिर क्या गलत। मां ही हमारी पहली गुरु होती है, जो जीवन पर्यंत सदाचार की सीख देती है।
कड़ी मेहनत, कठिन जीवन संघर्ष के बीच मेरी मां ने हम छह भाई-बहनों का लालन-पालन किया। गांव की सीधी-साधी महिला होने के बावजूद जब वह शहर में रही तो उसने सादगी नहीं छोड़ी। भाई बहनों में मैं सबसे छोटा था। मां ने घर का खर्च चलाने के लिए गाय भी पाली और किसी स्कूल में शिक्षा ग्रहण न करने के बावजूद हम सभी भाई बहनों को क, ख, ग, घ को पहचानना सिखाया। पिताजी ने ही माताजी को अक्षर ज्ञान कराया था और वही ज्ञान माताजी ने हमें पढ़ाने में आगे बढ़ा दिया। मां के आशीर्वाद से सभी भाई बहन की शादी भी हो गई और मां नाती-पौतों वाली हो गई। बच्चे भी अपनी इस नानी या दादी से काफी प्यार करते हैं। मां का मैने भी सदा कहना माना, लेकिन एक बात नहीं मानी, वो कहती थी बेटा शराब ना पिया कर और मैं कहता कि जल्द छोड़ दूंगा। वो जल्द कभी नहीं आ रहा था। शायद मां तब दुखी रहती होगी, लेकिन मुझे तो नशे में नजर नहीं आता था। एक बार मेरे एक मित्र ने पूछा कि तुम जीवन में सबसे ज्यादा प्यार किसे करते हो, मैने तपाक से उत्तर दिया अपनी मां से। बेटा, पत्नी का नाम ना लिया और ना जाने क्यों मेरे मुंह से मां निकला। मित्र ने कहा कि तुम झूठ बोल रहे हो। यदि मां से प्यार करते तो जो शराब छोड़ने को कह रही है, उसका कहना मानते। मां से ज्यादा तुम्हें तो शराब से प्यार है। बस इसी दिन से मैने शराब छोड़ दी। मां तेरे प्यार में कितनी ताकत है। अब चार साल हो गए, लेकिन शराब का मन तक नहीं होता।
उम्र बढ़ने के साथ ही मां के जीवन में अब बदलाव आने लगा है। मेरा बड़ा बेटा करीब 15 साल का है, जो छह माह की की उम्र से ही मेरी मां या अपनी दादी से साथ ही सोता है। दादी भी पौते का ख्याल रखती है। अब मां हर बात भूलने लगती है। साथ ही उसे सुनाई भी कम देने लगा है। मैं उसके लिए कान की मशीन भी लेकर आया, लेकिन उसने नहीं लगाई। कहा कि उसके कान ठीक हैं। बच्चों के साथ उसका कई बार ऐसे झगड़ा होता है, जैसे बच्चे लड़ते हैं। इस बहस का मुद्दा भी बच्चों वाला ही होता है। जो मां सुबह मेरे उठने से पहले ही नहा जाती थी, वह इस बार की बीती सर्दियों में नहाना भी भूलने लगी थी। तब उसे याद दिलाया जाता और नहाने को कहा जाता। अब गर्मियां आ गई तो वह कई बार नार्मल ही नजर आने लगती। पर एक बात और है कि खाने में उसे अब कुछ पसंद नहीं आता। कभी कभार मैगी की मांग करती है, तो कभी सूप की, कभी विस्कुट व जूस की। दाल, चावल व रोटी तो उसके दुश्मन हो गए हैं। न उसके मुंह में स्वाद ही रहा और न ही उसे भूख लगती है। हर सुबह बिस्तर से उठकर मैं यही देखता हूं कि मां कैसी है। बच्चे जब स्कूल चले जाते हैं तब मैं अपना मां का नाश्ता गर्म करता हूं। मां खाने को मना करती है। जबरदस्ती मैं उसे खाना देता हूं। वह चिड़ियों की भांति जरा सा खाती है और बाकी बचा चुपके से फेंक देती है। मानो मुझे पता न चले कि उसने खाया नहीं। अकेले में वह कभी रोने लगती है, कुछ ही देर बाद ऐसा लगने लगता है कि मानो वह बिलकुल ठीक है। अब कभी कभार ही वह मुझे या मेरी पत्नी को गलती पर टोकती है। भले ही मां बच्चों जैसी हो गई है, लेकिन फिर भी मैं इसी बात से खुश हूं कि मेरे पास मां है। उसे अभी मैं 100 के पार तक देखना चाहता हूं और इसी प्रयास में रहता हूं कि उसका स्वास्थ्य ठीक रहे। साथ ही यह चाहता हूं कि वह सिर्फ एक बात भूले। वह यह कि खाना खाने के बाद वह भूल जाए कि उसने खाना खा लिया है और दोबारा खाना मांगे। ताकि चिड़िया की तरह बार-बार खाने से उसका पेट भरा रहे।
भानु बंगवाल

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