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धरती फाड़कर सोना बरसने का इंतजार…

Anubhav
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मालिक देता, जब भी देता, देता छप्पर फाड़कर। यहां तो छप्पर है नहीं, फिर चलो धरती ही खोद ली जाए। खेत बंजर पड़े हैं, लेकिन उसे खोदने की फुर्सत किसी को नहीं। खेत को खोदते तो शायद ये धरती सोना उगलती, लेकिन यहां तो महज पांच वर्ग मीटर के हिस्से को खोद कर पूरे भारत की किस्मत बदलने की तैयारी चल रही है। वो भी एक साधु के कहने पर। सुना है कि साधु के कहने पर कई बार लोगों की किस्मत पलट गई। फिर सरकार भी क्यों पीछे रहे। सो शुरू करा दी उन्नाव के डांडिया खेड़ा स्थित राव राम बक्स सिंह किले के पास सोने की खोज में खुदाई। सपनों के खजाने की खोज जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, तमाशबीनों के साथ ही पूरे देश के लोगों की जिज्ञासा भी बढ़ने लगी है। सच ही तो कहा संतश्री शोभन सरकार ने इस स्थान पर खजाना दबा है। खजाना मिले या ना मिले, लेकिन वहां पहुंच रही भीड़ के जरिये कई लोग चांदी काटने लगे हैं। तमाशबीनों के लिए चाय, नाश्ता, पकोड़ी आदि की दुकानें सजने लगी। चलो खजाना मिलने से पहले ही इस बहाने कई को रोजगार तो मिला। सोने की तलाश में जैसे-जैसे धरती का सीना चीर रहे हैं, वैसे-वैसे ही लोगों की उत्सुकता बढ़ रही है। स्थानीय युवाओं का रोजगार चल पड़ा। सोना मिले या ना मिले, लेकिन वहां अस्थायी दुकान चलाने वाले तो यही सोच रहे होंगे कि ये खुदाई लंबी चले। लोगों की भीड़ वहां आए और वे इस बहाने सोना न सही, लेकिन चांदी जरूर काटते रहें।
इस खुदाई ने राजनीतिक लोगों को चर्चा करने का मुद्दा दे दिया। नरेंद्र मोदी जहां सरकार को खींच रहे हैं, वहीं साधु व संत समाज पक्ष व विपक्ष में खड़ा होने लगा है। वैसे सपनों में कौन यकीं करेगा। सपने तो देखने व भूलने के लिए होते हैं। हर रोज भारत की गरीब आबादी यही सपना देखती है कि वह भी महल में ठाठ-बाट से रह रही है। गरीब व्यक्ति दो जून की रोटी का सपना देखता है। वह सपना देखता है कि उसके बच्चे भी अच्छे स्कूल में पढ़ने जाएं, लेकिन उसके सपने की किस को चिंता है। क्योंकि उसके सपने में गड़ा धन नहीं है। व्यक्ति को जहां भी सोना (लालच) नजर आता है वही उसके पतन का कारण भी बनता है। सोना यानी लालच। सीता को भी हिरन सोने का नजर आया। तो उसे इसका भयंकर परीणाम सहना पड़ा। सोने (नींद) के दौरान सोने का सपना। वो भी एक संत को। संत ने तो ठीक कहा कि जमीन में सोना दबा पड़ा है। सोना तो जमीन के भीतर ही होगा, यदि नहीं मिला तो कहीं और खोद लो, वहां मिल जाएगा। ये धरती तो सभी धातु व गैस व अन्य खजाना अपने भीतर समाए हुए है। हो सकता है वहां सोने की बजाय तेल का भंडार ही मिल जाए। मनोज कुमार की फिल्म का गीत यूं ही नहीं बुना गया कि..मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे मोती। इस गीत के अब सार्थक होने का सभी इंतजार कर रहे हैं।
वैसे भारत देश को सोने की चीड़िया भी कहा जाता है। यानी यहां सोने की कोई कमी नहीं थी। आखिर वो सोना कहां दबा पड़ा है। चलो देर से आयद, दुरुस्त आयद, वाली कहावत को अब चरितार्थ करने में जुट गए। पर देखा जाए तो यह भी कहा गया कि राजा जनक ने हल चलाया, लेकिन धरती पर बीज नहीं बोए। यानी उन्होंने फल की इच्छा के बिना ही कर्म किया। जब उन्होंने निष्काम कर्म किया तो उन्हें भक्ति रूपी सीता मिली। जहां सीता हो तो वहां भगवान राम स्वयं चले आते हैं। यहां तो सोना खोजने के लिए फल की इच्छा से कर्म हो रहा है। सोना मिला नहीं, लेकिन बंटवारे को लेकर विवाद होने लगा। एक और महाभारत की तैयारी। काश संतश्री शोभन सरकार की बात सच निकले। धरती से दबा खजाना मिल जाता। फिर क्या था कोई भी काम करने की जरूरत नहीं। बस घर में चादर तान को सोते रहो। कब किस दिन एक सुनहरा सपना आ जाए और किस्मत पलट जाए। अंग्रेज तो चांद पर ठोकर मारकर आ गया, हम सपनों की दुनिंया में ही विचरण करते रहेंगे। खुराफाती रामदास जी भी चादर तान कर सो गए। फिर लगातार सात दिन तक वह घर से बाहर नहीं निकले। आस-पड़ोस के लोगों ने उनकी तलाश की तो भीतर से दरबाजा बंद मिला। दरबाजा तोड़कर खोला गया। देखा भीतर रामदास जी सोए पड़े हैं। उन्हें नींद से उठाया गया। पहले वे लोगों पर नाराज हुए। फिर उन्होंने कहा कि मोहल्ले के गरीब धर्मदास के मकान के नीचे खजाना दबा पड़ा है। भीड़ जुटने लगी धर्मदास के मकान के पास। खजाने की तलाश में धर्मदास की झोपड़ी तोड़ी जानी थी। वह गिड़गिड़ा रहा था कि उसने पूरे जीवन की कमाई से झोपड़ी बनाई है। वह कहां जाएगा। लोगों ने कहा कि खजाना मिलने पर उसे भी हिस्सा दिया जाएगा। रामदास का सपना सच हो सकता है। धर्मदास को भविश्य नहीं, अपने वर्तमान की चिंता थी। उसने कहा कि खुदाई के दौरान वह कहां रहेगा। वह अपना घर नहीं तुड़वा सकता। इस पर लोगों ने चंदा कर गांव में ही धर्मदास के लिए नया मकान बनवा दिया। तब शुरू हुई धर्मदास के पुराने घर में खजाने की तलाश में खुदाई। कई दिन व महीने के बाद भी कुछ नहीं निकला। इस बीच रामदास भी स्वर्ग सिधार गए, लेकिन उनके सपने ने धर्मदास को एक अच्छा आशियाना दिला दिया। काश शोभन सरकार को भी ऐसा ही सपना आता कि खजाना फलां के मकान के नीचे दबा होता। इससे कई धर्मदास का तो भला होता। फिर भी जहां खुदाई चल रही है, वहां कई धर्मदास अपनी दुकानें चलाकर अपनी पोटली का खजाना बढा़ने का प्रयास कर रहे हैं। चलो इस बहाने उनका भी कुछ भला हो जाएगा।
भानु बंगवाल

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