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प्यार बांटते चलो….

Anubhav
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छुट्टी का दिन था। दोपहर को रोहित पड़ोस के घर में अपने दोस्त रजत के साथ खेलने गया था। कुछ ही देर में वह वापस घर लौट आया। उसका मूड़ कुछ उखड़ा था। जैसे ही वह गेट खोलकर घर में पहुंचा प्रकाश ने पूछा बेटे क्या हुआ। तुम इतनी जल्दी कैसे वापस आ गए। इस पर रोहित फूट पड़ा और कहने लगा- पापा अब मैं दोबारा रजत के घर नहीं जाऊंगा। उनके घर में सब गंदे हैं। वे सब मुझे परेशान करते हैं। यही नहीं रजत के पापा ने मुझे थप्पड़ भी मारा। आप भी जाकर रजत को थप्पड़ मारो।
अपने पांच वर्षीय बेटे का रोना सुनकर कीचन से रीतू भी कमरे में आ गई और रोहित को छाती से लगाती हुई चिल्लाने लगी- कितना बेरहम है वो गंजा, जिसने मेरे फूल से बेटे को मारा। वह भुनभुनाते हुए पड़ोसी सुरेंद्र को सबक सिखाने के लिए घर से बाहर जाने को हुई, तभी प्रकाश ने टोका- क्यों जा रही है, कुछ फायदा नहीं। बच्चों के झगड़े में बड़े नहीं लड़ा करते।
यहां तो बड़े ने बच्चे को मारा है- रीतू बोली
कोई गलती की होगी, बगैर गलती के कोई नहीं मार सकता। तुम्हारा लाडला भी कम शैतान तो नहीं है।
-फिर तुम ही जाकर पूछो कि रोहित ने ऐसा क्या किया, जो उसे थप्पड़ मारा।
प्रकाश बोला- पूछ लेंगे पहले गुस्से पर तो काबू पाओ। मेरी बात साफ तौर पर सुन लो कि कोई झगड़ा करने नहीं जाएगा। फिर प्रकाश ने रोहित को डांटा- स्कूल का होमवर्क नहीं किया। पहले होमवर्क करो, तब जाकर खेलो। इस पर रोहित होमवर्क करने में जुट गया और प्रकाश की पत्नी रीतू कीचन में चली गई।
करीब आधे घंटे बाद पड़ोसी सुरेंद्र प्रकाश के घर आया। उसने आते ही कहा- शर्मा जी रोहित कहां है।
-क्या काम पड़ गया बच्चे से- प्रकाश बोला
-उसने शिकायत नहीं की क्या, मैं तो सोच रहा था कि आप लड़ने आओगे। आप तो आए नहीं- सुरेंद्र बोला
-लड़ लेंगे। लड़ने के लिए काफी वक्त है। मामला घुमाओ नहीं बताओ क्या हु्आ भाई।
-यार रोहित पहले मेरे कंधे में बैठ कर खेल रहा था। फिर सिर पर तबला बजाने लगा। मैने समझाया तो बोला कि गंजे के सिर का तबला ही बजाया जाता है। वह समझाने पर भी नहीं मान रहा था। मैने उसे हल्का थप्पड़ मारा तो वह धमकी देता हु्आ गया कि-पापा से तुम्हें पिटवाऊंगा। मेरे पापा जूडो-कराटे जानते हैं।
-यह सुनकर प्रकाश को हंसी आ गई। यार बच्चों की बात का बुरा मानकर यदि हम आपस में लड़ते रहेंगे तो एक दिन ऐसा आएगा कि हम दोनों में से एक को मकान छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ेगा। यदि झगड़े की ऐसी ही आदत रही तो क्या गारंटी है कि दूसरी जगह जाने के बाद भी पड़ोसियों से विवाद की नौबत न आए। विवाद का कोई अंत नहीं है। अपनी ऊर्जा को नेक काम के लिए संभालकर रखना ही सभी के लिए बेहतर है।
सुरेंद्र बोला- खैर यार यदि तुम्हें बुरा लगा हो तो मैं दोनों हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं।
-इसमें माफी की क्या बात है। यदि मेरे साथ भी रोहित ऐसा व्यवहार करता तो मैं भी उसे सजा जरूर देता। वह होमवर्क कर रहा है। आपके घर जैसे पहले खेलने जाता था, वैसे ही आज भी जाएगा। बाकि आपकी मर्जी है। यह कहकर प्रकाश चुप हो गया।
सुरेंद्र ने समीप ही खड़े रोहित को गोद में उठा लिया और उसे पुचकारते हुए अपने साथ घर ले गया। सुरेंद्र के घर रोहित के मस्ती करने की आवाज प्रकाश को सुनाई दे रही थी। रजत व अन्य बच्चों के साथ वह खेल रहा था। मासूम यह भी भूल चुका था कि वह इसी घर से कुछ देर पहले रोते हुए गया था। सब कुछ सामान्य हो गया।
प्रकाश घर में बैठा-बैठा सोच रहा था कि उसने उत्तेजना में आकर कोई ऐसा कदम नहीं उठाया, जिससे उसे बाद में पछताना पड़ता। वह अतीत की यादों में गोते लगाने लगा। एक घने मोहल्ले में उसका बचपन कटा था। वहां टीन की छत व भीतर से लकड़ी की सिलिंग के मकानों की लंबी लाइनें हु्आ करती थी। मकान के नाम पर एक परिवार के पास दो या एक कमरे होते थे। बरामदे की छत के नीचे बची जगह को लोगों ने खुद ही दीवार से कवर कर रसोई का रूप दिया था। सबके दरबाजे एक ही तरफ को खुलते थे। पीछे की तरफ खिड़की थी। रसोई की दीवार इतनी ऊंची थी कि उसके ऊपर से झांका जाए तो पड़ोसी की रसोई में होने वाली हर हलचल का पता चल जाए कि आज वहां क्या बन रहा है। कुछ ने दीवार व छत के बीच टाट लगाकर पर्दा डाल रखा था। एक लेन में करीब 15 कमरे थे। वहां प्रकाश के पिता के पास दो कमरे थे। बगल के कमरे में एक तरफ पड़ोसी दिलराम, वहीं दूसरी बगल में एक दृष्टिहीन युवक किशन थापा रहता था।
प्रकाश का जन्म भी इसी घर में हु्आ था। पिता सरकारी कार्यालय में थे। पहले वे दूसरी जगह रहते थे। आफिस करीब होने के कारण वे देहरादून के इस मोहल्ले में किराए के मकान में शिफ्ट हो गए थे। तब बीस फुट लंबे व दस फुट चौड़े एक कमरे का किराया बामुश्किल सात रुपये था। प्रकाश से बड़ी चार बहने व एक भाई और थे। दिलराम के दो बेटे थे। उनमे छोटा प्रकाश के बड़े भाई की हमउम्र का था। प्रकाश के घर में सबसे बड़ी दो बहने थी, फिर उसका भाई फिर दो बहन। इसके बाद सबसे छोटा प्रकाश था। प्रकाश के पिता को सभी शर्माजी कहते थे। जब से प्रकाश ने होश संभाला उसे यही बताया गया कि दिलराम के घर कभी मत जाना। इस पर भी वह ना जाने क्यों बगल की दीवार फांदकर उनके घर जाने की चाह रखता था।
दिलराम की पत्नी का नाम शांति था, पर वह अशांत थी। अलसुबह उठते ही नित्यकृम से निवृत्त होकर वह सार्वजनिक नल पर पहुंचती। वहां लोग पहले से पानी की बाल्टियां लेकर अपने नंबर का इंतजार कर रहे होते। नल टपकना शुरू होता, तो लोग नंबर से पानी भरते। शांति का जब नंबर आता तो वह पहले नल की टूंटी को रगड़कर धोती, तब पानी भरती।
बात-बात पर शांति और प्रकाश की मां का झगड़ा होता। कई बार तो दिलराम व शर्मा जी भी औरतों के विवाद में कूद जाते। एक दूसरे को जब तक खूब न सुना लेते तब तक वे शांत नहीं होते। दोनों घरों में एक तरह से तलवारें खींची थी। जैसे-जैसे प्रकाश व उसके भाई बहन बड़े होते गए, उन्हें इस झगड़े से नफरत होने लगी। पता ही नहीं चला कि कब शांति के दूसरे बेटे राजा व प्रकाश के बड़े भाई राजेश के बीच दोस्ती हो गई। दोनों घर से ऐसे निकलते कि एक दूसरे की तरफ देखते ही नहीं। आगे जाकर दोनों साथ हो जाते और साथ-साथ स्कूल जाते। साथ-साथ खेलते, लेकिन अपनी माताओं के डर से घर में ऐसा व्यवहार करते कि जैसे वे आपस में कभी बात ही नहीं करते।
समय बीतता गया और दोनों परिवारों के बच्चे एक दूसरे के निकट आते गए, लेकिन महिलाओं का झगड़ा बंद नहीं हुआ। झगड़े की वजह अक्सर शांति तलाश लेती थी। दीपावली आई तो प्रकाश ने पटाखे फोडे। फटने के बाद एक बम का अंगारा शांति के घर के समीप गिरा, तो इस पर ही झगड़ा। होली में पिचकारी की धार शांति के घर के आगे गली पर गिरी तो झगड़ा। बरसात में नाली का पानी ओवरफ्लो होकर शांतिं के घर की तरफ गया तो झगड़ा। नाली प्रकाश के घर के सामने से होते हुए शांति व आगे के घरों के लिए बनी थी। उसे ऐतराज था कि प्रकाश के घर से नाली में एक बूंद भी पानी न आए। बरसात में गली में ऊंचाई वाले स्थान से बहकर आने वाले बरसाती पानी को भी बंधा लगाकर वह रोकने का प्रयास करती।
बच्चों ने जब किशोर व युवावस्था में कदम रखा तो उन्होंने आपस में लड़ना छोड़ दिया। वे शांति की गैरहाजिरी में एक दूसरे से खूब बातें करते। कई बार तो शांति के बेटों ने प्रकाश की मां को समझाने का प्रयास किया कि -मौसीजी हमारी मां कि बातों पर ध्यान न दिया करो। उसे झगड़े के सिवाय कुछ नहीं आता।
शांति ने बड़े बेटे की शादी की, लेकिन पड़ोस में शर्मा परिवार को न्योता नहीं दिया। बहू आई उसे भी पड़ोसियों से बात न करने की हिदायत दी। हां वह बहू से कभी भी नहीं झगड़ती थी, लेकिन बहू ने भी सास की हिदायत नहीं मानी। दोनों परिवारों के सदस्य शांति की अनुपस्थिति में आपस में बात करते। कई बार एक-दूसरे की मदद भी करते। छिपकर यह मिलना-जुलना तब तक रहा, जब तक शांति की मौत नहीं हो गई।
भानु बंगवाल

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