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यह दबंग तो डरती भी है…

Anubhav
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घंटाघर से होकर जैसे ही वो गुजरी है, मौके पर मौजूद पुलिस उसे देखकर सतर्क हो जाती है। जगह-जगह पर खड़े खुफिया विभाग के लोग भी उसे संदेह की निगाह से देखने लगते हैं। क्योंकि उसकी शक्ल, कदकाठी व शारीरिक बनावट ही कुछ ऐसी है कि जो भी उसे देखता है, बस एक बार देखता ही रह जाता है। कद करीब पांच फुट तीन ईंच। शरीर मोटा व ढोल की तरह। बाल बॉबकट व चेहरे का रंग काला। जींस के साथ ही ऊपर से मोटी जैकेट। जैकेट की सभी जेब ठसाठस भरी हुई। कमर में छोटा बैग। बैग में स्टील कैमरे। जींस की बेल्ट पर कैमरे की प्लैश फंसाई हुई। उस पर मतवाली चाल। सर्दी के मौसम में भी वह जब सड़क पर चल रही थी, तो ऐसा लगता था कि वह हांफ रही हो।
उस दिन देहरादून के गांधी पार्क में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की सभा थी। ऐसे में शहर की मुख्य सड़कों पर लोकल इंटेलिजेंस यूनिट, आइबी व अन्य खुफिया विभाग के लोग तैनात थे। उस युवती पर नजर पड़ते ही खुफिया विभाग के दो लोग उसके पीछे हो लिए। वे शायद यही समझे कि हो सकता है कि युवती एक मानव बम हो। शायद उसकी जैकिटों की जेब बमों से भरी हो। युवती का पीछा करते करीब सौ मीटर आगे तक जाने पर अचानक वह गायब हो गई। वहां पर एक कांप्लेक्स था। इस कांप्लेक्स के पास जब युवती गायब हुई तो खिफिया विभाग वालों ने उसकी पड़ताल की। काफी लोगों से पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि जैसा हुलिया उन्होंने बयां किया, वैसी ही एक युवती ने हाल ही में एक समाचार पत्र में ज्वाइनिंग ली है। वह प्रैस फोटोग्राफर है। तब जाकर खुफिया विभाग के लोगों ने राहत की सांस की।
वह मानव बम तो नहीं थी, लेकिन एक बम के समान जरूर थी। एक समाचार पत्र में उसने उन दिनों ज्वाइन किया था। इत्तेफाक से मैं भी तब उसी समाचार पत्र में था। सोनम नाम की इस युवती को बॉस ने मुझसे मिलवाया और कहा कि इसे कुछ दिन तक अपने साथ ही कार्यक्रमों में ले जाना। ताकि यह यहां के बारे में कुछ जान सके। उस भारीभरकम वजन वाली करीब 27 वर्षीय युवती को मैने अपने स्कूटर में जब पहली बार बैठाया तो पड़ाक की आवाज आई। मैने न तो स्कटर रोका और न ही यह देखा कि यह आवाज कहां से आई। पर मैं समझ गया था कि फुट रेस्ट टूटकर सड़क पर ही गिर गया है। उसका वजन की इतना था कि मैं पतली-दुबली कद काठी का व्यक्ति स्कूटर लहरा कर चला रहा था। साथ ही मन में सोचता कि इस मुसीबत से कैसे छुटकारा मिलेगा।
धीरे-धीरे सोनम ने अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया। वह जो भी फोटो लाती वह कमाल का होता। यही नहीं वह पर्यावरण प्रेमी, पशु व पक्षी प्रेमी भी थी। वह कई बार सांप का खेल दिखाने वाले सपेंरों से उनकी पिटारी छीनकार भाग चुकी थी। साथ ही आसपास के जंगल में इन सांपों को मुक्त भी करा चुकी थी। गुस्सा आने पर तो सभी उससे डरने लगते। एक बार एक काफी उम्र की महिला अपनी गलती से ही उसके स्कूटर से टकराने से बच गई। किसी तरह महिला को तो सोनम ने बचा लिया, लेकिन उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वह स्कूटर खड़ा करके महिला के पास गई। गुस्से में उसे ऐसा डांटा कि महिला तो थरथर कांपने लगी। इस पर सोनम का कोमल हृदय जागा और उसने महिला को टटोला कि कहीं चोट तो नहीं लगी।
तब समाचार पत्र के सिटी कार्यालय में अक्सर सोनम के किस्से ही चर्चित थे। वह जिस भी रिपोर्टर के साथ फोटो खींचने जाती बाद में वही रिपोर्टर उसका कोई न कोई किस्सा सुनाने लगता। कई तो कान पकड़ते कि इसे साथ लेकर नहीं जाएंगे। य़ह तो किसी से भी भिड़ जाती है। युवावस्था में नाट्य संस्था से जुड़ा होने के कारण मेरी आदत हर किसी की आवाज निकालने व नकल करने की थी। एक दिन मैं सोनम की आवाज निकालकर साथियों से चुहलबाजी कर रहा था। मेरी पीठ दरवाजे की तरफ थी। मेरी नकल का मजा लेने वाले सभी साथी अचानक चुप हो गए। मैं हैरान था कि इन्हें मेरी बात पर मजा क्यों नहीं आ रहा है। मैने पीछे पलटकर देखा तो मेरे पूरे शरीर की हालत ऐसी हो गई कि काटो तो खून नहीं। पीछे सोनम खड़ी मुझे सुन रही थी। कुछ क्षण घबराने के बाद मैने खुद को संभाला और उससे कहा आओ मैं आज तुम्हारी नकल उतारने का प्रयास कर रहा हूं। तुम काफी भाग्यशाली हो, जो सामने न रहने भी याद की जाती हो। मेरी बातों से पता नहीं उस पर क्या प्रभाव पड़ा कि वो नाराज नहीं हुई। हां इसके बाद से मैने कभी उसकी नकल नहीं उतारी।
समय बीता और बदलता चला गया। सोनम ने भी देहरादून छोड़ दिया। मैं भी उस समाचार पत्र को छोड़कर दूसरे में चल गया। पता ही नहीं चला कि सोनम कहां है। हां जब भी कोई वीआइपी शहर में आता तो मुझे अक्समात ही उसकी याद आने लगती। एक दिन फेसबुक में एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई। इसमें सोनम नाम तो था, लेकिन प्रोफाइल में फोटो नहीं थी। साथ ही प्रोफाइल में उसके बारे में कोई डिटेल भी शो नहीं हो रही थी।
ऐसे में मैने रिक्वेस्ट भेजने वाली युवती को मैसेज किया कि जिसकी फोटो नहीं होती वह फर्जी होते हैं। फर्जी आइडी वालों को मैं दोस्त नहीं बनाता। इस पर जवाब आया कि मुझे भूल गए क्या। मैने तो आपके साथ काम किया है। तब जाकर समझा कि यह तो वही दबंग है। जो इन दिनों शायद बिहार में है। उससे फेसबुक के जरिये मिलकर मुझे खुशी हुई। मैने उससे कहा कि आप दूसरों की फोटो खींचती हो, लेकिन अपनी फोटो क्यों नहीं डाली। इस पर जवाब आया कि फोटो डालने से मैं डरती हूं कि कहीं लोग उसे देखकर डर ना जाएं। तब जाकर मुझे पता चला कि यह दबंग सोनम डरती भी है। क्योंकि, लोग व्यक्ति व व्यक्तित्व देखकर नहीं, बल्कि फोटो देखकर ही फेसबुक में अपना कुनबा बढ़ाते हैं।
भानु बंगवाल

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